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जय॑तामिव तन्य॒तुर्म॒रुता॑मेति धृष्णु॒या। यच्छुभं॑ या॒थना॑ नरः॥

English Transliteration

jayatām iva tanyatur marutām eti dhṛṣṇuyā | yac chubhaṁ yāthanā naraḥ ||

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Pad Path

जय॑ताम्ऽइव। त॒न्य॒तुः। म॒रुता॑म्। ए॒ति॒। धृ॒ष्णु॒ऽया। यत्। शुभ॑म्। या॒थन॑। न॒रः॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:23» Mantra:11 | Ashtak:1» Adhyay:2» Varga:10» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:5» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अगले मन्त्र में पवन और बिजुली के गुण उपदेश किये हैं-

Word-Meaning: - हे (नरः) धर्मयुक्त शिल्पविद्या के व्यवहारों को प्राप्त करनेवाले मनुष्यो ! आप लोग भी (जयतामिव) जैसे विजय करनेवाले योद्धाओं के सहाय से राजा विजय को प्राप्त होता और जैसे (मरुताम्) पवनों के संग से (धृष्णुया) दृढ़ता आदि गुणयुक्त (तन्यतुः) अपने वेग को अति शीघ्र विस्तार करनेवाली बिजुली मेघ को जीतती है, वैसे (यत्) जितना (शुभम्) कल्याणयुक्त सुख है, उस सबको प्राप्त हूजिये॥११॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे विद्वान् लोग शूरवीरों को सेना से शत्रुओं के विजय वा जैसे पवनों के घिसने से बिजुली के यन्त्र को चलाकर दूरस्थ देशों को जा वा आग्नेयादि अस्त्रों की सिद्धि को करके सुखों को प्राप्त होते हैं, वैसे ही तुमको भी विज्ञान वा पुरुषार्थ करके इनसे व्यावहारिक और पारमार्थिक सुखों को निरन्तर बढ़ाना चाहिये॥११॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाग्रिमे मन्त्रे वायुविद्युद्गुणा उपदिश्यन्ते।

Anvay:

हे नरा ! यूयं या जयतां योद्धॄणां सङ्गेन राजा शत्रुविजयमेतीव मरुतां सम्प्रयोगेण धृष्णुया तन्यतुर्वेगमेत्य मेघं तपति तत्सम्प्रयोगेण यच्छुभं तत्सर्वं याथन प्राप्नुत॥११॥

Word-Meaning: - (जयतामिव) विजयकारिणां शूराणामिव (तन्यतुः) विस्तृतवेगस्वभावा विद्युत्। अत्र ऋतन्यञ्जिवन्यञ्ज्यर्पि० (उणा०४.२) अनेन ‘तन’ धातोर्यतुच् प्रत्ययः (मरुताम्) वायूनां सङ्गेन (एति) गच्छति (धृष्णुया) दृढत्वादिगुणयुक्ता। अत्र सुपां सुलुग्० इति सोः स्थाने याच् आदेशः (यत्) यावत् (शुभम्) कल्याणयुक्तं सुखं तावत्सर्वं (याथन) प्राप्नुत। अत्र तकारस्य स्थाने थनादेशोऽन्येषामपि दृश्यते इति दीर्घश्च। (नरः) ये नयन्ति धर्म्यं शिल्पसमूहं च ते नरस्तत्सम्बोधने। अत्र नयतेर्डिच्च। (उणा०२.१००) अनेन ऋः प्रत्ययष्टिलोश्च॥११॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यतो विद्वांसो शूरवीरसेनया शत्रुविजयं यथा च वायुघर्षणविद्यया विद्युद्यन्त्रचालनेन दूरस्थान् देशान् गत्वाऽग्नेयास्त्रादिसिद्धिं च कृत्वा सुखानि प्राप्नुवन्ति, तथैव युष्माभिरपि विज्ञानपुरुषार्थाभ्यामेतैर्व्यावहारिकपारमार्थिके सुखे नित्ये वर्द्धितव्ये॥११॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जसे विद्वान लोक शूरवीरांच्या सेनेने शत्रूंवर विजय प्राप्त करतात व जसे वायूच्या घर्षणाने विद्युतयंत्राला वेगाने दूर असलेल्या देशात पोहोचवून आग्नेय इत्यादी अस्त्रांची सिद्धी करून सुख मिळवतात तसेच तुम्हीही विज्ञान व पुरुषार्थ याद्वारे त्यांच्याकडून व्यावहारिक व पारमार्थिक सुख निरंतर वाढवावे. ॥ ११ ॥